पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि धरती पर सबसे पहले मानव जैसे लोग आज से लगभग 53 लाख वर्ष पूर्व प्रकट हुये। धीरे-धीरे कई प्रकार के मानव धरती पर अस्तित्व में आये परन्तु कुछ समय के पश्चात वह लुप्त हो गये। आज का मानव (Homo Sapiens) लगभग 2,00,000 वर्ष पूर्व धरती पर अस्तित्व में आया। मानव जीवन के इस लम्बे काल में मनुष्य पौधे और जड़ें खाकर अथवा शिकार करके अपना पेट पालता था। इस पोस्ट में हम धरती पर मनुष्य का जन्म कैसे हुआ एवं कब हुआ से लेकर इसके विकास आदि की चर्चा करेंगे।

पहले विद्वानों को 19वीं शताब्दी तक के पूर्व इतिहासकाल के बारे में बहुत कम जानकारी थी। परन्तु विद्वानों ने उन स्थानों पर खुदाई की जहाँ पर किसी समय मनुष्यों के रहने की सम्भावना समझी। इन खुदाइयों में पुराने बर्तन तथा प्राचीन काल के मनुष्यों तथा जानवरों की हड्डियां प्राप्त हुई हैं। इन वस्तुओं से मिली जानकारी के आधार पर विद्वानों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूर्व ऐतिहासिक काल में मनुष्य कैसे जीवन व्यतीत करता था। विद्वानों का विचार है कि मानव जाति का इतिहास लगभग 40 लाख वर्ष पुराना है।:  provided by: हिन्दुस्तानी ज्ञानी

मानव की उत्पत्ति का सम्बन्ध जीव विज्ञान से है। इस उद्देश्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण विकास की क्रिया है। मनुष्य का अस्तित्व में आना क्रमिक विकास (evolution) का परिणाम है।

विकास का क्रमबद्ध व्याख्या करने का श्रेय चार्ल्स डार्विन को जाता है। विकास के बारे में उनका सिद्धांत आधुनिक विचारधारा का आधार बना। उनकी पुस्तक “On the Origin of Species” ने धार्मिक संस्थाओं अथवा न्यूटन द्वारा दिये गये ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में दार्शनिक विचारों पर सन्देह व्यक्त किया। न्यूटन के निश्चित तथा स्थाई वर्गों के स्थान पर डार्विन ने जीवों के विकास के लिए परिवर्तन तथा संयोग के स्थिर सिद्धांत को प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत स्थिर तत्वों के स्थान पर गतिशीलता तथा विकास पर पूर्ण बल देता है।

       डार्विन ने तथ्यों को एकत्रित करके यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि जीवित पौधे, मनुष्य तथा जानवर सभी प्राणी प्राथमिक रूप से विकसित हुये। जीवित वस्तुएं वातावरण के प्रभावाधीन अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए जो संघर्ष करती हैं उसमें उन्हीं को सफलता मिलती है जो पूर्णतया स्वयं को वातावरण के अनुकूल ढाल सके। ( सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट / स्वस्थतम की उत्तरजीविता )

डार्विन ने जीव विकास की विधिवत व्याख्या की है। उसके अनुसार

मनुष्य विकास क्रिया का सबसे उत्तम प्रमाण है। मनुष्य तथा पशुओं के शारीरिक ढांचों तथा कार्यों में बहुत-सी समानतायें हैं। मनुष्य एक स्तनधारी तथा रीढ़ की हड्डी वाला जीव है। उसके तथा अन्य स्तनधारी और रीढ़ की हड्डी वाले जीवों के पूर्वज एक ही थे।


डार्विन ने अपने विचारों के समर्थन में बहुत-सी सामग्री एकत्रित की। नये अवशेषों के मिलने से डार्विन के सिद्धांतों को बल मिला।

मनुष्य की उत्पत्ति तथा प्रारम्भिक समाज

मनुष्य जाति स्तनधारी वर्ग से सम्बन्धित है। मनुष्य नर वानर (Primates) वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं। नर वानर स्तनधारी जीवों के उन वर्गों से सम्बन्ध रखते हैं जो कि पूर्ण विकसिकत तथा बुद्धिमान हैं। मनुष्य, बंदर तथा लंगूर इसी वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं। उनके शरीर पर बाल होते हैं। उनके दाँत कई प्रकार के होते हैं। उनके शरीर के तापमान में स्थिरता होती है।

                          
28-30 लाख वर्ष पहले इन नर वानरों में एक और समूह उत्पन्न हुआ जिनको मनुष्य परिवार के पशु अथवा महावानर (Hominid) कहा जाता है, इनमें वनमानुष भी सम्मिलित है। मनुष्यों तथा नर वानरों में अनेक समानतायें पाई जाती थी। आरम्भिक मनुष्य का सिर बहुत छोटा तथा पीछे की ओर झुका हुआ था। उनके शरीर पर घने बाल होते थे। वे बोल नहीं सकते थे परन्तु समझने योग्य ध्वनि निकाल सकते थे। वे भ्रमणकारी थे तथा भोजन की तलाश में जगह-जगह घूमते रहते थे। आरम्भ में वे पशुओं की भान्ति चार टांगों पर चलते थे। परन्तु समय बीतने पर वे सीधे खड़े होकर हाथों का प्रयोग करने लगे।

आदिमानव (Upright man or Homo erectus) की उत्पत्ति सर्वप्रथम लगभग 12-20 लाख वर्ष पहले अफ्रीका में हुई। परन्तु कई इतिहासकारों का विचार है कि मनुष्य की उत्पत्ति केवल अफ्रीका में ही नहीं अपितु साथ-साथ यूरोप, उत्तरी तथा दक्षिण पूर्वी एशिया में भी हुई।

यह पाषाण युग तथा आदिमानव की उत्पत्ति का समय था। इस युग को पाषाण युग कहा जाता है क्योंकि इस काल के मनुष्य हथियार बनाते थे।

                       
वनमानुष से आधुनिक मानव तक मानव विकास की प्रक्रिया के अध्ययन से पहले हमें होमीनाईडज (Hominoids) तथा होमिनिड (Hominids) शब्दों का अर्थ अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। होमीनाईडज नर वानरों की ही एक उपजाति थी। जबकि होमिनिड का विकास होमीनाईडज से हुआ था। उन दोनों में कई समानतायें हैं साथ-साथ उनमें कुछ भिन्नतायें भी हैं। होमीनाईडज का मस्तिष्क होमिनिड के मस्तिष्क की अपेक्षा छोटा था। होमीनाईडज की चार टांगे होती थी तथा वे इन पर चलते थे परन्तु इनकी अगली दो टांगें लचीली होती थी। इसके विपरीत होमिनिड सीधे खड़े हो सकते थे तथा वे दो टांगों पर चलते थे।

                        
होमीनाईडज तथा होमिनिड के हाथों के पंजों में भी अन्तर था जिसकी सहायता से वे औज़ार बनाने तथा इनका प्रयोग करते थे। होमीनाईडज बन्दरों से भिन्न होते थे। उनका शरीर बहुत छोटा होता था तथा उनकी कोई दुम नहीं होती थी। इसके अतिरिक्त होमीनाइडज का शिशुकाल तथा बड़ों पर निर्भरता का काल लम्बा होता था।

आदिमानव के अवशेषों का भिन्न-भिन्न जातियों तथा हड्डियों की बनावट के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है।

आस्ट्रेलोपिथिक्स (Australopithecus), 40-30 लाख वर्ष पूर्व तक

प्रथम वनमानुष को आस्ट्रेलोपिथिक्स अथवा Southern ape कहा जाता है। वे पूर्वी अफ्रीका में पाये जाते थे। उनमें मनुष्यों की विशेषतायें पाई जाती थीं। वे खड़े हो सकते थे। परन्तु आस्ट्रेलोपिथिक्स तथा वनमानुष के हाथों की बनावट में अन्तर था। इन्हीं आस्ट्रेलोपिथिक्स की एक उपजाति को Zinjanthropus कहा जाता था तथा वह पत्थर के औजारों का प्रयोग करते थे। वे पशु जीवन व्यतीत करते थे तथा जंगली कीडे-मकोडे खाते थे।

आस्ट्रेलोपिथिक्स के प्रथम अवशेष 1959 में तंजानिया के Olduvai Gorge में, ब्रिटिश पुरातत्व विज्ञानी Mary Leakey द्वारा खोजा गया था।

होमो हैबिलिस (Homo Habilis), 24-14 लाख वर्ष पूर्व तक

इस काल में मनुष्य के पंजे इतने कठोर नहीं थे कि वह लड़ाई में काम आ सके। वह तीखे दांतों वाले बाघो और शेरों का सामना नहीं कर सकते थे। मनुष्य को अपनी जान बचाने के लिए फुर्ती से काम लेना पड़ता था। 24 से 14 लाख ई.पू. के बीच के काल का मनुष्य पत्थर के शस्त्र बनाते थे।

होमो हैबिलिस अपने पूर्वजों की अपेक्षा अधिक लम्बे थे। वह उन स्थानों पर जाकर ड़ेरे डाल लेते थे जहां उन्हें आसानी से भोजन मिल सके। यह लोग पत्थर के औज़ार तथा शस्त्र बनाते थे परन्तु यह औज़ार देखने में बहुत भद्दे लगते थे। मनुष्य, सुरक्षा तथा क्षमता के लिए छोटे समूह मिल कर बड़े समूह बना लेते थे। इन समूहों का आकार भोजन की उपलब्धि पर निर्भर करता था।

होमो हैबिलिस मनुष्य आग जला कर इसके इर्द-गिर्द इकट्ठे बैठ कर आनन्द लेते थे। परन्तु वह स्वयं आग जलाना नहीं जानते थे, इसलिए उनको तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी जब तक कि उन्हें कोई जलती हुई वस्तु न मिल जाये जिसकी सहायता से वह किसी अन्य वस्तु को जला सके।

                        
वैज्ञानिकों को होमो हैबिलिस मानव द्वारा जलाई गई आग के अवशेष प्राप्त हुये हैं तथा उन्होंने उसका निरीक्षण करके उसका समय भी निश्चित किया है। उन्हें उन स्थानों पर पत्थर के औज़ार तथा पशुओं की हड्डियां भी प्राप्त हुई हैं। इससे संकेत मिलता है कि होमो हैबिलिस जानवरों का शिकार करते थे तथा पशुओं की हड्डियों का मज्जा (bone marrow) भी एकत्रित करते थे। इन अवशेषों से यह भी पता चलता है कि होमो हैबिलिस अधिक समय तक एक स्थान पर निवास नहीं करते थे बल्कि वह भोजन की खोज में विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते थे।

सीधा खड़े होने वाला मनुष्य (Homo Erectus), 19-143,000 लाख वर्ष पूर्व तक

इस काल में मानव ने आग जलाना सीख लिया था। वह अफ्रीका से चल पड़ा तथा लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व विश्व के कई भागों में फैल गया।

इस काल के मनुष्य को विकसित होने में और 2 लाख वर्ष लग गये। सीधे खड़े होने वाले मनुष्य का आकार लगभग इतना ही था जितना कि अब है परन्तु उसकी खोपड़ी का आकार आज के मनुष्य की खोपड़ी के आकार का लगभग दो तिहाई था। अब वह और अधिक अच्छे हथियार बनाने लगा था। उसने पत्थर के कुल्हाड़े तथा चाकू बनाये जिनका उसने शस्त्रों के रूप में प्रयोग किया। सम्भवतः सबसे पहले शिकारी यहीं मनुष्य था। इस मनुष्य को आग जलाने का ढंग भी आता था। इस खोज से मानव के जीवन में नाटकीय परिवर्तन आये।

                         
लगभग 10-15 लाख वर्ष पहले होमो इरेक्टस अफ्रीका छोड़ कर अन्य महाद्वीपों में जा कर बसने लगे। यह आरंभिक मनुष्य सम्भवतः भोजन की खोज में अफ्रीका से यूरोप तथा एशिया से अमेरिका जा पहुँचा। होमो इरेक्टस की जानकारी हमें पीकिंग (चीन) से मिले इस काल के मनुष्यों के अस्थि पंजर से मिलती है। इस अस्थि पंजर को पीकिंग मैन के नाम से भी जाना जाता है। यहां से इस काल के मनुष्यों द्वारा बनाये गये औजार तथा शस्त्र भी प्राप्त हुये हैं। इन शस्त्रों तथा औजारों से हमें यह पता चलता है कि वह लोग किस प्रकार रहते थे, किन दिशाओं में गये और वहाँ कैसे पहुंचे।

                          
आज का बुद्धिमान मनुष्य (Homo Sapiens), 3,00,000 लाख वर्ष पूर्व से आज तक

इस काल के अवशेषों से पता चलता है कि इन आरम्भिक मनुष्यों के अस्थि-पंजर वर्तमान मनुष्य के अस्थि पंजर के आकार जैसे ही थे। होमो सैपियन मनुष्यों की खोपड़ी होमो इरेक्टस मनुष्य की खोपड़ी से अधिक बड़ी तथा अधिक आगे की ओर झुकी हुई थी। इससे मस्तिष्क का आकार बढ़ने के लिए स्थान की गुंजाईश थी। इस काल का मनुष्य शिकार द्वारा भोजन इकट्ठा करता था। वह पत्थरों के औजारों, सुइयां तथा हड्डियों से मछली पकड़ने के कांटे बनाता था। वे जानवरों की चमड़ी को जानवरों की अंतड़ियों के धागे बना कर सीते थे। वह चमड़ी से गर्म जूते भी बनाते थे।


निअंडरथल (Neanderthal), 1,50,000,-2,00,000 वर्ष पूर्व तक

इस काल के आरम्भिक मनुष्यों की सबसे पुरानी जातियों में से निअंडरथल मानव थे। यह शब्द जर्मनी के निअंडर घाटी से लिया गया है, जहां से निअंडरथल मानव के अस्थि-पंजर प्राप्त हुए थे। यह आरम्भिक मनुष्य की अन्य जातियों से भिन्न थे। वह अधिक लंबे, मजबूत तथा शक्तिशाली थे। ऐसा प्रतीत होता है कि वह उस समय के अनुसार बहुत विकसित थे। वे बहुत कुशल शिकारी थे। वह प्रायः गुफाओं में रहते थे। वे आग जलाने में बहुत निपुण थे तथा सम्भवतः हमेशा अपना भोजन आग में पका कर खाते थे।

वे मृतकों को कुछ रीतियों के अनुसार दफनाते थे। ऐसा प्रतीत होता है वह किसी धर्म में भी विश्वास रखते थे। निअंडरथल काल के कब्रिस्तान के स्थान पर की गई खोजों से ऐसा प्रतीत होता है कि वे मृतक शरीर को रंगों से सजाते थे। वे प्रथम मनुष्य थे जो मृत्यु के पश्चात जीवन के सम्बन्ध में सोचते थे।


होमो सेपियन – क्रोमैगनन तथा आधुनिक मनुष्य (Homo Sapiens & Cro-Magnon)

निअंडरथल मनुष्य विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न समय में लुप्त हो गये। उदाहरणतया वे यूरोप में 12000 ई.पू. के लगभग लुप्त हो गये थे परन्तु साईबेरिया में लगभग 2000 ई.पू. में। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन था।

इस समय तक मनुष्य एक कुशल शिकारी तथा भोजन एकत्रित करने वाला बन चुका था। वे अब सारे विश्व में फैल चुके थे। वैज्ञानिकों को यूरोप, एशिया, अमेरिका तथा विश्व के अन्य भागों से इस काल के मनुष्यों के अवशेष प्राप्त हुये हैं। यद्यपि इस काल के मनुष्य का जीवन बहुत कठोर था परनतु उनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन-पदार्थ तथा शरण स्थल थे। इनमें बहुत से मनुष्यों की आयु बहुत लंबी थी। यूरोप में रहने वाले होमो सेपियन को क्रोमैगनन कहा जाता है।

क्रोमैगनन मानव हिमयुग की कठोर सर्द ऋतु से सुरक्षा के लिए स्थाई निवास स्थान बनाते थे। गर्मियों में वह तंबुओं में रहते थे तथा पशु पालते थे। सर्दियों में वह बर्फ की झोपड़ियों में रहते थे जो कि वृक्षों की शाखाओं तथा बड़ी-बड़ी मोटी हड्डियों से बनी होती थी तथा ऊपर से जानवरों की खाल से ढकी होती थी। कुछ झोपड़ियां लोगों के छोटे समूहों के रहने के लिये बनाई जाती थी। यूक्रेन में लंबी झोपड़ियों के अवशेष प्राप्त हुये हैं। जिनमें एक पूरा कबीला ही समा सकता था। इन लम्बी झोपड़ियों में अंदर जाने के लिए बहुत से प्रवेश द्वार बनाये जाते थे। इन कमरों में आग जलाने के लिए बहुत से स्थान होते थे।

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